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शनिवार, 23 जुलाई 2011

खूबसूरती, इंसानियत के हक में


- देवाशीष प्रसून -

शायद खूबसूरत दिमाग का होना अच्छा है, 
लेकिन इससे अज़ीम तोहफा खूबसूरत दिल का होना है।
साल 2001 में आई हॉलीवुड की एक बेजोड़ फिल्म ए ब्यूटीफुल माइंड का यह संवाद बताता है कि विलक्षण और प्रखर बुद्धि के साथ संवेदनशील दिल का मौज़ूद होना ही खूबसूरत दिमाग को बनाता है। रॉन हॉवॉर्ड निर्देशित यह फिल्म अर्थशास्त्र के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित, मशहूर गणितज्ञ जॉन फोर्ब्स नैश पर बनी थी। फिल्म 1998 में आई पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित इसी नाम की एक किताब पर आधारित है। फिल्म में बखूबी दिखाया गया है कि शिजोफ्रेनिया जैसी गंभीर दिमागी बीमारी से पीड़ित नैश नेकी और विलक्षण मेधा के कारण बस इसलिए खूबसूरत दिमाग वाला इंसान कहलाता है, क्योंकि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी वह इंसानियत की भलाई और उन्नति के लिए अपने दिमाग का लगातार इस्तेमाल करता रहा है। दिमाग की खूबसूरती, चतुराई और तिकड़मों में नहीं है, खूबसूरती, उसकी सीरत में है, इस बात में है कि कोई मानवता के हित में कितने बड़े पैमाने पर तीक्ष्ण बुद्धि का इस्तेमाल कर रहा है। 

बात खूबसूरत दिमाग वाले एक अर्थशास्त्री से शुरू हुई है। पर, अर्थशास्त्र के क्षेत्र में और भी कई महान लोगों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है, जिनके ज़हीन दिमागों ने दुनिया भर के लोगों की ज़िंदगी खुशनुमा बनाने की खूब सारी कोशिशें की हैं। ऐसे में हम, खूबसूरत दिमाग वाले एडम स्मिथ, एल्फ्रेड मार्शल, कार्ल मार्क्स, कीन्स और डेविड रिकॉर्डो को कैसे भूल सकते हैं, जिन्होंने अपने अध्ययनों के जरिए अर्थशास्त्र की ऐसी नींव तैयार की, जिस पर आधुनिक अर्थशास्त्र का पूरा ढ़ाँचा टिका हुआ है।

बात सिर्फ अर्थशास्त्र की नहीं है। जिनके दिमाग खूबसूरत होते हैं, वे मानव जाति के कल्याण के लिए हर हालत में प्रयासरत रहते हैं। दरअसल, किसी की दिमागी खूबसूरती के चिर-यौवन के लिए हमेशा लोगों का भला सोचते रहना जरूरी है। अब देखिए न! विज्ञान, राजनीति, कला, दर्शन और साहित्य के क्षेत्रों में भी अपने सुंदर दिमाग से लोगों की ज़िंदगी आरामदेह और आसान बनाने वाले लोगों की लंबी फेहरिस्त है। इस फेहरिस्त में सबसे पहले अरस्तु का नाम आता है। अरस्तु को सिर्फ भौतिकी, जीवविज्ञान और जंतुविज्ञान जैसे विज्ञान के विषयों में ही महारत नहीं थी, बल्कि वह दर्शनशास्त्र, तत्वमीमांसा, तर्कशास्त्र, भाषाविज्ञान, संप्रेषण, संगीत, कविता, रंगमंच, नीतिशास्त्र और राजनीति जैसे विषयों में भी पारंगत थे। इन विषयों के बारे में अरस्तु ने प्रारंभिक स्तर पर खूब अध्ययन और लेखन कर एक तरह से इन विषयों के अध्ययन के लिए ज़मीन तैयार की है।

सिर्फ वैज्ञानिकों की बात करें तो सबसे पहले सर आइजेक न्यूटन याद आते हैं, जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण के नियमों और गति के तीन सिद्धांतों की खोज करके विज्ञान को समझने की दिशा ही बदल दी थी। न्यूटन भौतिकी के अध्येता होने के साथ-साथ गणित, खगोलशास्त्र, रसायन और प्राकृतिक दर्शन में भी अधिकार रखते थे। खगोलशास्त्र के पिता कहे जाने वाले गैलेलिओ गैलिली भी खूबसूरत दिमाग के मालिक थे। उन्होंने दूरबीन का ही निर्माण नहीं किया, बल्कि खगोलशास्त्र को समझने के लिए महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किए। मानव अस्तित्व के बारे वैज्ञानिक सोच को चिंतन के केंद्र में लाने का अहम काम चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन ने किया था। खूबसूरत दिमाग वाले एक और वैज्ञनिक थे - अलबर्ट आइंस्टाइन, जिन्होंने सापेक्षता के सिद्धांत को लाकर भौतिकी की दुनिया में क्रांति ही ला दी। विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले कई और खूबसूरत दिमाग हैं। सबका नाम लेना संभव नहीं है, लेकिन थॉमस एडिशन, स्टीफन हॉकिन्स, लुई पाश्चर, जगदीश चंद्र बोस, और मारकोनी पहली कतार में खड़े लोग हैं।

मानव हित में जितनी मेहनत विज्ञान में दिमाग लगाने वाले लोगों ने की है, राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का योगदान उनसे कम नहीं है।  इस क्षेत्र के काम में जुटे खूबसूरत दिमाग वाले लोगों में संयुक्त राज्य अमेरीका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन याद आते हैं, जिनका नाम लोकतांत्रिक राजनीति में आज भी बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। लिंकन के साथ-साथ जिस राजनीतिज्ञ को खूबसूरत दिमाग के लिए पूरी दुनिया में याद किया जाता है, वह कोई और नहीं, हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हैं। गाँधी के अलावा भारत के जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह और वल्लभ भाई पटेल को दक्षिणी एशिया की राजनीति में काम करने वाले, खूबसूरत दिमाग वाले लोगों की श्रेणी में रखा जा सकता है। बर्तानिया राजनीति के बड़े नाम विस्टन चर्चिल भी दुनिया भर के लोगों के हित में काम करने वाले खूबसूरत दिमाग के मालिक थे। इनके अलावा, राजनीति में व्यापक जन समुदाय का हित सोचने का काम करने वाले लोगों में लेनिन, वाशिंग्टन, रूज़वेल्ट और माओ के साथ-साथ फिदेल कास्ट्रो, कोफी अन्नान, नेल्सन मंडेला, आन सान सू की और यासर अराफात आदि का भी नाम लिया जा सकता है। इनमें से कई नेताओं का चित्रण नायकों के रूप में होता है और कइयों का खलनायक के रूप में, परंतु यह अपनी-अपनी समझदारी पर निर्भर है कि किसको कोई कैसा मानें। जो भी हो, तमाम राजनीतिक समर्थन या विरोध के बावजूद ये दुनिया में राजनीतिक काम करने वाले खूबसूरत दिमाग रहे हैं।

विज्ञान और राजनीति से इतर खूबसूरत दिमाग वाले लोगों ने रंग, मिट्टी और पत्थरों में खूबसूरती भरने का काम भी किया है। जी हाँ, इंसानों के बेहतर जीवन के लिए कला का अपना विशेष महत्व है। चित्रकला या मूर्तिकला के क्षेत्र में खूबसूरत दिमाग वाले लोगों की कमी नहीं है। इन लोगों की लंबी फेहरिस्त में प्रमुखता से आने वाले नाम हैं – माइकल एंजेलो, रिज्न, पाब्लो पिकासो, लिओनार्डो द विंसी, वॉन गॉग और जेएमडब्यू टर्नर। इसी तरह संगीत की दुनिया में काम करने वाले बीथोवन, मोजार्ट और बाख को नहीं भूला जा सकता, जिन्होंने अपने खूबसूरत दिमाग के बदौलत महान संगीत की रचना की। भारत में भी संगीत की महानता छूने वाले लोगों की परंपरा रही है। मध्यकाल के तानसेन और बैजू बावरा के अलावा संगीतज्ञों की एक आधुनिक परंपरा भी भारत में रही है, जिसने अपने सुमधुर संगीत से लोखों-करोड़ो लोगों का मन मोहा है।

कला का एक ऐसा क्षेत्र है, जो विचारवान लोगों के बीच अहम भूमिका रखता है, वह है साहित्य। साहित्य कला के साथ नए विचारों को प्रस्तुत करने और पुराने विचारों के बारे में फिर से सोचने-समझने का मंच रहा है। साहित्य की दुनिया भी खूबसूरत दिमाग वाले लोगों से भरी पड़ी है। कुछ का नाम लेने का मतलब बाकियों को कम आंकना है, फिर भी कुछ नाम ऐसे हैं जिनके दिमाग की खूबसूरती पर किसी को संदेह न होगा। साहित्य में विशेष स्थान रखने वाले - विलियम शेक्सपीयर, कालिदास, रविंद्रनाथ ठाकुर, जॉर्ज बर्नाड शॉ, खलील जिब्रान, मैक्सिम गोर्की, बरतोल्त ब्रेख़्त, फ्रांज काफ्का, डी.एच. लॉरेंस, जैक लंडन, मोहम्मद इक़बाल, नज़ीम हिक़मत, लोर्का, गैबरियल गार्सिआ मार्ख़ेज, व्लादीमीर नावोकोव, वी. एस. नाइपॉल, आग्डेन नैश, पाब्लो नेरूदा, ओरहाम पामुक, हैराल्ड पिंटर, रिल्के, सलमान रुश्दी, एच. जी, वेल्स और स्टीपन ज़्विग जैसे सैकड़ों नाम हैं।

अर्थशास्त्र, विज्ञान, राजनीति, कला और साहित्य जैसे मानव जीवन को संचालित करने वाले तमाम विषयों में सबसे खास उस विषय के अध्ययन का नज़रिया होता है। इसी नज़रिए को दर्शनशास्त्र के रूप मे व्याख्यायित किया जाता है। वैसे तो अरस्तु, प्लेटो और सुकरात को पाश्चात्य दर्शन के पिता के रूप में देखा जाता है, लेकिन आधुनिक पश्चिमी समाज में दर्शनशास्त्र का आधार स्तंभ डेसकार्टेस को माना जाता है। इनके अलावा दर्शन का अध्ययन करने वाले खूबसूरत दिमाग रहे हैं- हीगल, नीत्शे और कांट के। पूरब के दार्शनिकों में खूबसूरत दिमाग वाले लोगों की लंबी परंपरा रही है, जिन्होंने आस्तिकता और भौतिकता, दोनों ही का मार्गों में पर्याप्त ज्ञान बटोरना का काम किया। गौतम बुद्ध को पूरबी दुनिया के दार्शनिकों का एक व्यापक असर रखने वाला व्यक्ति माना जा सकता है। 

कुल मिलाकर फिर वही बात दोहरानी पड़ेगी कि चाहे कोई समय रहा हो या कोई देश, दुनिया को बेहतर बनाने वाले दिमाग जन्म लेते रहे हैं और उनकी दुनिया को बेहतर बनाने की कवायद ही उन्हे खूबसूरत दिमाग का मालिक बनाती हैं। क्योंकि, खूबसूरती इंसानियत को बचाए रखने की संभावना का ही नाम है। 

एक बार एक लड़की ने अपने पुरुष मित्र से पूछा कि मुझमें वह कौन-सी बात है, जो तुम्हें सबसे ज्यादा पसंद है? लड़के ने कहा तुम्हारे ज़ेहन की खूबसूरती, जो हर वक्त आसपास उजाला किए रहती है। वह समझी नहीं कि ज़ेहन की खूबसूरती का क्या मतलब था। लड़के ने समझाया कि आज की इस मतलबपरस्त दुनिया में ख़ुद के अलावा किसी और की भलाई के लिए सोचना ही जेहन की खूबसूरती है। वह दिमाग ही खूबसूरत है, जो मानवता के हित में सोचते रहता है, बिल्कुल तुम्हारी तरह। फिर लड़के ने बड़े प्यार से कहा कि तुम मुझे पसंद हो, क्योंकि तुम में इंसानियत को बचाए रखने की संभावनाएँ बची हुई हैं।

बुधवार, 20 जुलाई 2011

ख़ूबसूरती जीने की ललक है...

देवाशीष प्रसून

अगर मैं तुम को ललाती सांझ के नभ की अकेली तारिका
अब नहीं कहता,
या शरद के  भोर की नीहारन्हायी कुंई,
टटकी कली चंपे की, वगैरह, तो
नहीं कारण कि  मेरा हृदय उथला या कि सूना है
या कि मेरा प्यार मैला है।

बल्कि केवल यही : ये उपमान मैले हो गये हैं।
देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं  कूच।

अज्ञेय ने अपने समय की ही नहीं, बल्कि बाद की पीढ़ियों की अनुभूतियों को भी शब्द देने का काम किया है, तभी तो जब बात सुंदरता की शुरू करनी थी तो सहसा उनके ये शब्द दिमाग के तहख़ानों से निकल कर सबसे पहले सामने आए। हो सकता है कि इस कविता का संदर्भ दूसरा रहा हो, लेकिन अहम बात है कि कवि ने बख़ूबी यह कहा है कि ख़ूबसूरती को हम प्रतीकों में पहचानते आए हैं और यह प्रतीक देश-काल, समाज-संस्कृति और आर्थिक-राजनीतिक माहौल के साथ बदलते रहते हैं। गो कि इनमें से किसी एक ने अपना जरा-सा भी रंग बदला कि जनमानस में व्याप्त ख़ूबसूरती के पैमाने ख़ुद-ब-ख़ुद बदलने लगे।
इंसान हो या कोई जानवर, सभी की अपनी पसंद-नापसंद होती है। किसी को कोई ख़ूबसूरत लगता है; तो किसी और को कोई दूसरा। इंसान मूलतः एक खोजी जीव है, जो हमेशा कारणों की खोज करते रहा है। तभी तो, तमाम तरह की जिज्ञासाओं को शांत करने के साथ-साथ, इंसान ने अपनी अनुभूतियों के भी कारणों को खोजने का प्रयास किया है। दुनिया के सभी देशों, तमाम समयों और संस्कृतियों में ख़ूबसूरती के अपने मानक रहे हैं और इन सभी मानकों की दार्शनिक व्याख्या भी रही है। अगरचे, मोटे तौर पर पूछें कि ख़ूबसूरती क्या है, तो एक सीधा-साधा और सर्वमान्य-सा ज़वाब होगा कि वह कुछ भी जो दिखने-सुनने में अच्छा लगे या उसके बारे में सोचने आदि से इंद्रियों और दिमाग को आनंद मिलता हो या अंतरात्मा को संतोष की अनुभूति होती है, वह ख़ूबसूरत है। लेकिन, अहम सवाल यह है कि ऐसा क्या है और किस कारण वह ऐसा है कि उसमें किसी की इंद्रियों और दिमाग को आनंद देने की क्षमता विकसित हो गई है? जाहिर-सी बात है कि इसके सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारण होते हैं, जो अलग-अलग देशों और अलग-अलग समयों के कारण अपना एक अलग स्वरूप रचते हैं।
भारत की बात करें तो यहाँ पौराणिक और दार्शनिक तौर पर सुंदरता के बारे में सत्यम् शिवम् सुंदरम्का दर्शन प्रचलित रहा है। मतलब यह है कि जो सत्य है, वही शिव है, यानी शुभ है और सही अर्थ में वही सुंदर भी है। भारतीय चिंतन परंपरा में सुंदरता की पूरी अवधारणा भाव और रस के रूप में व्याख्यायित होती रही है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र के छठे और सातवें अध्याय में इसके बारे में विस्तारपूर्वक लिखा और इससे ही, भारतीय सौंदर्यशास्त्र की आधारभूत अवधारणाएँ बनीं। भरत मुनि के मुताबिक किसी भी कला की सुंदरता उसके भाव और रस पर आधारित रहती है।
यह तो बात भारत की रही, पर यूनानी सभ्यता में भी ख़ूबसूरती के बारे में ख़ूब चिंतन हुआ है। पायथागोरस सुकरात के समय से पहले के दार्शनिक हैं। वह एक जाने-माने गणितज्ञ और दार्शनिक थे। यह वही पायथागोरस हैं, जिनके नाम से त्रिकोणमिति का पायथागोरस थेओरम आज भी मशहूर है। उनका मानना था कि ख़ूबसूरती और गणित के बीच में गहरा रिश्ता होता है। मतलब यह है कि किसी भी व्यक्ति या वस्तु के अस्तित्व का गणितीय आयाम अगर सटीक है तो वह चीज़ ख़ूबसूरत होगी। उन्होंने कहा था कि जिन चीज़ों का निर्माण समरूपता और सममिति के सुनहरे अनुपात के अनुरूप होता है, वे चीज़ें ज़्यादा आकर्षक दिखती हैं। प्राचीन यूनानी स्थापत्य का निर्माण, पायथागोरस के इसी सौंदर्य-सिद्धांत को ध्यान में रख कर किया गया। समय बीतने पर, ख़ूबसूरती के बारे में यूनानी दर्शन के आधार-स्तंभ प्लेटो ने सुझाया कि ख़ूबसूरती एक ऐसा ख़याल है, जो दूसरे सभी ख़यालों से परे है। इसका आशय यह लगाया जा सकता है कि प्लेटो का मानना था कि ख़ूबसूरती को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। लेकिन, प्लेटो की यह अवधारणा अरस्तू के पल्ले नहीं पड़ी। अरस्तू प्लेटो का प्रमुख आलोचक और उनका सबसे क़ाबिल शिष्य था। अरस्तू की नज़रों में ख़ूबसूरती का रिश्ता सीधे-सीधे सदाचार और नेक-नियत होने से है। जाहिर है कि अरस्तू इंसानी ख़ूबसूरती के बारे में यह कह रहे होंगे।
कुछ दूसरे देशों और अलग समयों की बात करते हैं। स्कॉटलैंड के दार्शनिक फ्रैंसिस हचशियन ने ज़ोर देते हुए कहा था कि सुंदरता विविधता में एकता और एकता में विविधता का ही दूसरा नाम है। यह एक बड़ा दर्शन है, जो कहता है मानवीय वैविध्य के तमाम घटकों के बीच सह-अस्तित्व की धारणा ही ख़ूबसूरती का मूल भाव है। कहने का मतलब, ऐसी कोई भी चीज़ सुंदर है, जो आसपास की चीज़ों को अपने में शामिल करने के बाद भी अपनी सभी इकाईयों के विशिष्ट चरित्र और गुणों को नष्ट नहीं करती है। लेकिन इसके विपरीत, उत्तर-आधुनिक संदर्भों में अंग्रेज दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे की मानें तो ख़ूबसूरती दरअसल शक्तिशाली और प्रभावशाली होने की प्रबल इच्छा का परावर्तन है। बाद के दिनों में, रोजर स्क्रहन और फ्रेडरिक टर्नर ने सुंदरता को एक अहम मानवीय मूल्य माना, जबकि इलेन स्कैरी ने इसे हमेशा न्याय और समरसता से जोड़ कर देखा।
ख़ूबसूरती के पैमाने देश, समाज और समय के साथ-साथ धार्मिक मान्यताओं से भी प्रभावित होते रहे हैं। इसका एक अहम नमूना इस्लामी सौंदर्यबोध है, जिसके तहत वही चीज़ें ख़ूबसूरत हैं, जिनका रिश्ता ख़ुदा या उनके बंदों से है। इसी तरह से जापान में भी ख़ूबसूरती के मानक कई तरह के दर्शनों से प्रभावित होते हैं। सिंटो बौद्ध का दर्शन बौद्ध धर्म पर आधारित है। इसके अलावा, जापान में और भी कई तरह के सौंदर्यबोध हैं, जैसे कि वबी-सबी, मियाबी, शिबुई, इकी, जो-हा-क्यू, यूगेन, गेरडो, इनसो और कवाई। इन सभी दर्शनों पर विस्तार से अलग बात से की जा सकती है।
भारतीय, इस्लामी, जापानी, पुरातन यूनानी और यूरोप के आधुनिक व उत्तर-आधुनिक दार्शनिकों के साथ-साथ चीन का भी सौंदर्य के बारे में सधा हुआ दर्शन रहा है। हालाँकि चीन का जनजीवन हमेशा बाहरी दुनिया को एक पहेली ही लगा, फिर भी चीन के लोगों का अपना एक सौंदर्यबोध है, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान भी है। चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस कहते हैं कि सुंदरता मानव स्वभाव को विस्तार देने वाला वह भाव है, जो लोगों को मानवता की ओर वापस लौटने को प्रेरित करता है।
कुल मिलाकर विभिन्न देशों और संस्कृतियों में ख़ूबसूरती के बारे में जो पैमाने विकसित हुए हैं, वह वहाँ की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितयों का सह-उत्पाद ही रहे हैं। इंसानी जरूरतों के मुताबिक ही उनके रूझान बनते हैं और यह रूझान ही तय करता है कि किस व्यक्ति को क्या ख़ूबसूरत लगेगा और किस को क्या नहीं। दरअसल, ख़ूबसूरती जीने की ललक है।
अफ्रीका के लोगों का रंग अमूमन काला होता है और हिंदुस्तान में गोरे लोगों की अच्छी-खासी संख्या है। यही कारण है कि अफ्रीका और हिंदुस्तान में अलग-अलग ढ़ंग से ख़ूबसूरती के पैमाने विकसित हुए हैं। अफ्रीकी देशों में लड़कों का दिल ब्लैक ब्यूटी फिदा होता है और इसके उलट, हिंदुस्तानी छोरे की पसंद ऐसी है कि वह गोरी लड़कियों पर अपनी जान छिड़कते हैं। लेकिन, फिर ऐसे भी प्रेमी-युगलों को आपने देखा होगा, जिनके मन में सुंदरता का पैमाना रंग-रूप नहीं, बल्कि मन-मस्तिष्क रहता है। याने जितने लोग, उतने ही पैमाने हैं ख़ूबसूरती के इस दुनिया में।


अहा! ज़िंदगी खूबसूरती विशेषांक (जुलाई 2011) में प्रकाशित कवर स्टोरी। इस अंक में और भी सुरूचिकर व पठनीय सामग्रियां हैं, अंक मंगवाने के लिए इस पते पर संपर्क करें- 
अहा! ज़िंदगी, 
भास्कर परिसर, 10-जे.एल.एन. मार्ग, 
मालवीय नगर, जयपुर - 302015 (राजस्थान)