- देवाशीष प्रसून
बाटला हाउस में मुठभेड़ के नाम पर मारे गए लोगों की पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट बड़ी शिद्दत के बाद सूचना के अधिकार के जरिए अफ़रोज़ आलम साहिल के हाथ लग पायी है।पोस्ट मार्टम रिपोर्ट इसे कत्ल बता रही है।जबकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने तो दिल्ली पुलिस के ही दलीलों पर हामी भरी थी। बिना घटनास्थल पर पहुँचे और आसपास व संबंधित लोगों से बातचीत किए बगैर ही इस मामले को सही में एक मुठभेड़ मानते हुए आयोग ने दिल्ली पुलिस को बेदाग़ घोषित कर दिया था। और तो और, सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पूरे मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के रपट पर आँखें मूंद कर विश्वास करते हुए किसी तरह के भी न्यायिक जाँच से इसलिए मना कर दिया, क्योंकि उसे लगता है कि ऐसा करने से पुलिस का मनोबल कमज़ोर होगा। यह चिंता का गंभीर विषय है कि किसी भी लोकतंत्र में मानवीय जीवन की गरिमा के बरअक्स पुलिस के मनोबल को इतना तवज्जो दिया जा रहा है। बहरहाल, आतिफ़ अमीन और मो. साजिद के पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट पर से पर्दा उठने के कारण नए सिरे से बाटला हाउस में पुलिस द्वारा किए गए नृशंस हत्याओं पर सवालिया निशान उठना शुरू हो गया है।
यह 13 सितंबर, 2008 के शाम की बात है, जब दिल्ली के कई महत्वपूर्ण इलाके बम धमाके से दहल गए थे। इसके बाद जो दिल्ली पुलिस के काम करने की अवैज्ञानिक कार्य-पद्धति दिखने को मिली, वह पूरी तरह से पूर्वाग्रह और मनगढ़ंत तर्कों पर आधारित है। बम धमाकों के तुरंत बाद ही पुलिस ने जामिया नगर के मुस्लिम बहुल बाटला हाउस इलाके के निवासियों को किसी पुख्ता सबूत के बगैर ही शक के घेरे में लेना और उनसे जबाव-तलब करना शुरू कर दिया था। अगले दिन ही, जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल राशीद अगवाँ और तीस साल के अदनान फ़हद को पुलिस के विशेष दस्ते के द्वारा पूछताछ के लिए उठा लिया गया और फिर बारह घंटे के ज़ोर-आज़माइश के बाद उन्हें छोड़ा गया। 18 तारीख़ को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक शोध-छात्र मो. राशिद को भी पूछताछ के लिए ले जाया गया और उसे ज़बरन यह स्वीकारने के लिए बार-बार बाध्य किया गया कि उसके संबंध आतंकियों से हैं। इस दौरान पुलिस ने उसे नंगा करके कई बार पीटा और तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया। बाद में उसे 21 तारीख़ को छोड़ दिया गया।
इसी बीच 19 तारीख़ को दिल्ली पुलिस के विशेष दस्ते ने आनन-फानन में बाटला हाउस इलाके के एल -18 बिल्डिंग को चारों तरफ़ से घेर लिया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक फ्लैट संख्या 108 के रहने वालों पर पुलिस ने गोलियाँ बरसायी गयीं। बाद में पुलिसिया सूत्रों से पता चला कि उक्त फ्लैट में इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने ठिकाना बनाया हुआ था, जिन्होंने पुलिस को आते ही उन पर गोलियां चलायी थी। जबाव में पुलिस के गोली से उन में से दो आतिफ़ अमीन और मो. साजिद की मौत हो गयी, दो लोग फरार हो गए और मो. सैफ़ को गिरफ़्तार कर लिया गया। पुलिस के अनुसार बाटला हाउस के एल-18 में रहने वाले सभी लोग दिल्ली बम धमाके के लिए कथित तौर पर जिम्मेवार इंडियन मुजाहिद्दीन से जुड़े हुए थे। इस कथित मुठभेड़ में घायल हुए इंस्पैक्टर मोहन चंद्र शर्मा को भी जान से हाथ धोना पड़ा।
लेकिन, गौरतलब है कि पूरे मामले में पुलिस, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और न्यायालयों के अपारदर्शी रवैये से यह मामला साफ़ तौर पर मुठभेड़ से इतर मासूम लोगों को घेर कर उनकी क्रूर हत्या करने का प्रतीत होता है। विभिन्न मानवाधिकार संगठनों के इस शक को बाटला हाउस में मारे गए लोगों के पोस्ट मार्टम की रपट ने और पुख्ता किया है।
पोस्ट मोर्टम के रपट के मुताबिक आतिफ़ अमीन और मो. साजिद के शरीरों पर मौत से पहले किसी खुरदरी वस्तु या सतह से लगी गहरी चोट विद्यमान है। सवाल उठना लाजिमी है कि अगर दोनों ओर से गोलीबारी चल रही थी तो दोनों के शरीर पर मार-पीट के जैसे निशान कैसे आये? ध्यान देने वाली बात है कि दोनों ही मृतकों ने अगर पुलिस से मुठभेड़ में आमने-सामने की लड़ाई लड़ी होती, तो उनके शरीर के अगले हिस्से में गोली का एक न एक निशान तो होता, जो कि नहीं था। आतिफ़ और साजिद के अन्त्येष्टि के समय मौज़ूद लोगों के मुताबिक दोनों शवों के रंग में फर्क था, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि उन दोनों की मौत अलग-अलग समय पर हुई थी। प्रश्न है कि क्या उन्हें पहले से ही प्रताड़ित किया जा रहा था और बाद में उन पर गोलियाँ दागी गयी?
चार पन्नों के रपट में साफ़ तौर पर लिखा है कि आतिफ़ अमीन की मौत का कारण सदमा और कई चोटों की वजह से खून बहना है। चौबीस साल के आतिफ़ के शरीर में कुल मिलाकर इक्कीस ज़ख्म थे। उस के शरीर में हुए ज्यादातर ज़ख्म पीछे की तरफ़ से किए गए थे, वह भी कंधों के नीचे और पीठ पर। इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि, आतिफ़ पर पीछे की ओर से कई बार गोलियाँ चलायी गयीं।
सत्रह साल के मो. साजिद की लाश के पोस्ट मोर्टम से पता चलता है कि उसके सिर पर गोलियों के तीन ज़ख्मों में से दो उसके शरीर में ऊपर से नीच की ओर दागे गए हैं। ये भी प्रतीत होता है कि साजिद को जबरदस्ती बैठा कर ऊपर से उसके ललाट, पीठ और सिर में गोलियाँ दागी गयीं।
साजिद और आतिफ़ की हत्या को मुठभेड़ के नाम पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है। पूरे मामले में सीधे रूप से जुड़ा हुआ मो. सैफ़ अब तक पुलिस हिरासत में है। अगर पुलिस की मानें तो मो. सैफ़ को वहीं से गिरफ़्तार किया गया, जहाँ आतिफ़ और साजिद की मौत हुई थी। ऐसे में उसके बयान का महत्व बढ़ जाता है, जिसे को पुलिस ने अब तक बाहर नहीं आने दिया है। साथ ही, इस मामले पर दिल्ली पुलिस का ’मुठभेड़ कैसे हुआ’ के बारे में बार-बार बदलता स्टैंड भी यह स्वीकारने नहीं देता है कि मृतकों की मौत किसी मुठभेड़ में हुई है। अपितु लगता यह है कि मृतक निहत्थे थे और उन्हें घेर कर वहशियाना तरीके से मारा गया।
तालिका 1: आतिफ़ की लाश पर पाये गए ज़ख्मों का ब्यौरा
बंदूक की गोली का निशान संख्या (रपट के मुताबिक) ज़ख्म का आकार ज़ख्म कहाँ पर है
14 1 सेमी व्यास, गहरा गड्ढा पीठ पर बायीं ओर
9 2X1 सेमी, 1 सेमी घर्षण और गहरा गड्ढा पीठ पर बायीं ओर
13 9.2 सेमी घर्षण और 3x1 सेमी गहरा गड्ढा पीठ की मध्य रेखा, गर्दन के नीचे
8 1.5 x1 सेमी गहरा गड्ढा दायें कंधे पर की हड्डी का हिस्सा, मध्य रेखा से 10 सेमी दूर और दायें कंधे से 7 सेमी नीचे
15 0.5 सेमी व्यास, गहरा गड्ढा निचले पीठ की मध्य रेखा, गर्दन से 44 सेमी नीचे
6 1.5 X1 सेमी, आकार में अंडाकार बायीं जांघ का अंदरूनी हिस्सा (ऊपर की ओर), बाये चूतड़ों पर ज़ख्म संख्या 20 जहाँ से धातु का एक टुकड़ा मिला से जुड़ा हुआ। बंदूक की गोली का निशान संख्या 20 आश्चर्यजनक रूप बहुत बड़ा 5x2.2 सेमी का है।
10 1x0.5 सेमी दायें कंधे से 5 सेमी नीचे और बीच से 14 सेमी नीचे
11 1x0.5 सेमी कंधे के हड्डी के बीच, मध्य रेखा के 4 सेमी दायें
12 2x1.5 सेमी पीठ के दायीं ओर, मध्य रेखा से 15 सेमी, दायें कंधे से 29 सेमी नीचे
16 1 सेमी व्यास दायीं बांह की कलाई और पिछला बाहरी हिस्सा
तालिका 2: साजिद की लाश पर पाये गए ज़ख्मों का ब्यौरा
बंदूक की गोली का निशान संख्या 1 दायें तरफ़ माथे पर आगे के ओर(ललाट पर)
बंदूक की गोली का निशान संख्या 2 दायें तरफ़ ललाट पर
बंदूक की गोली का निशान संख्या 5 दायें कंधे की ऊपरी किनारा (नीचे की तरफ जा रहा)
बंदूक की गोली का निशान संख्या 8 बायीं छाती के पीछे( गर्दन से 12 सेमी )
बंदूक की गोली का निशान संख्या 10 सिर के पिछले हिस्से का बायां भाग
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3 टिप्पणियां:
छद्म सेक्यूलरिज्म की दौड़ में मीडिया में जिंदा रहने के लिए इस तरह के तर्क और तथ्य जरूरी हैं. बेशक, आप अपने युग के श्रेष्ट सेक्यूलर पत्रकार साबित होंगे. शुभकामनाओं के साथ
thik hai. yahi hota hai
बेहद ज़रूरी पोस्ट है प्रसून जी…क्या इसे जनपक्ष पर लगाया जा सकता है?
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